नेपाल के विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठा ने खुलासा किया है कि नेपाली गोरखा युवा रूस की सेना में भर्ती हो रहा है। यह संख्या तकरीबन 15 हजार से ज्यादा है, जिनमें से 19 गोरखा रूस-यूक्रेन वार में मारे जा चुके हैं। जबकि चार गोरखाओं ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद से मांगी है।

भारतीय सेना में अग्निपथ योजना को लेकर नेपाल के गोरखा अब सकारात्मक रुख दिखाने लगे हैं। उन्हें लगता है कि रूस की भाड़े वाली फौज में भर्ती होकर मरने से ज्यादा बेहतर अग्निवीर बनना है। भारत ने जब अग्निपथ योजना लागू की, तो इसे लेकर नेपाल सरकार ने भी विरोध जताया था कि भारतीय सेना में भर्ती के लिए बेकरार रहने वाले गोरखा युवा कहां जाएंगे। इसे लेकर डिप्लोमेटिक स्तर पर भी बातचीत हुई।

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' पिछले साल जब भारत यात्रा पर आए थे, तो उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने ये गोरखाओं की भर्ती को लेकर मुद्दा उठाया था, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला और नेपाल ने अग्निपथ योजना के तहत भारतीय सेना में गोरखा भेजने बंद कर दिए। अग्निपथ भर्ती योजना की वजह से नेपाल और भारत के बीच 200 साल के सैन्य संबंधों की विरासत खतरे में पड़ चुकी है। वहीं नेपाली गोरखा भर्ती के दूसरे रास्ते तलाश रहे हैं।

रूस की सेना में 15 हजार से ज्यादा नेपाली गोरखा

नेपाल के विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठा ने खुलासा किया है कि नेपाली गोरखा युवा रूस की सेना में भर्ती हो रहा है। यह संख्या तकरीबन 15 हजार से ज्यादा है, जिनमें से 19 गोरखा रूस-यूक्रेन वार में मारे जा चुके हैं। जबकि चार गोरखाओं ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मदद से मांगी है। हाल ही में यूक्रेन में रूसी सेना की ओर से युद्ध में हिस्सा ले रहे नेपाली गोरखाओं के परिजनों ने काठमांडू में 17 दिनों तक लगातार प्रदर्शन किया था। पांच मई को नेपाली सरकार ने भरोसा दिलाया कि उनकी चिंताओं को नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।

परिजनों की मांग थी कि रूस की भाड़े की सेना में शामिल हुए गोरखा युवाओं को नेपाल सुरक्षित वापिस लाया जाए। उनका कहना था कि रूस अच्छे पैकेज का लालच देकर नेपाली गोरखाओं को अपनी सेना में भर्ती कर रहा है। लेकिन वहां जाने पर उन्हें सीधे मोर्चे पर भेज दिया जाता है और वहां वे यूक्रेनी सेना की गोलियों को शिकार हो रहे हैं। उनका कहना था कि रूस ने उनकी तरफ से लड़ने वाले जवानों को 167,020 रुपये प्रतिमाह सैलरी के साथ-साथ रूस की नागरिकता और तमाम दूसरी सुविधाएं देने का एलान किया था। लेकिन अब उनके साथ वादाखिलाफी हो रही है।

विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठा ने जताई चिंता

नेपाली गोरखाओं के परिजनों की मांग थी कि रूसी सेना में काम कर रहे नेपालियों की सुरक्षित वापसी हो, घायलों के लिए मुआवजे और उनका इलाज कराया जाए। यूक्रेनी सेना द्वारा पकड़े गए पांच नेपाली युद्धबंदियों की सुरक्षित वापसी कराई जाए, युद्ध में मारे गए नेपाली गोरखाओं के शवों को वापस मंगाया जाए और रूस सरकार ने जो वादे किए थे, वह उन्हें पूरा करे। जिसके बाद नेपाली प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठा ने डिप्लोमेटिक चैनलों के माध्यम से इन चिंताओं को दूर करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया। हालांकि नेपाल सरकार पहले भी ऐसा ही वादा कर चुकी है। नेपाली अधिकारियों ने माना है कि रूसी सेना में भर्ती नेपाली गोरखाओं के 200 से ज्यादा परिवार उनके संपर्क में हैं और अब तक 19 गोरखा मारे जा चुके हैं, जबकि पांच को बंदी बना लिया गया है।

नेपाली गोरखाओं के लिए नौकरी की कमी नहीं

काठमांडू के कोटेश्वर इलाके में स्थित लॉयल गोरखा ट्रेनिंग सेंटर 2016 से नेपाली गोरखाओं को पुलिस और फौज में भर्ती की ट्रेनिंग दे रहा है। हर इस संस्थान से कई बच्चे सलेक्ट भी होते हैं। इस सेंटर के मैनेजर प्रदेश राय भी इस बात से चिंतित हैं कि नेपाल के गोरखा भर्ती के लिए रूस में भाड़े की फौज में क्यों जा रहे हैं। वहां कोई सिक्योरिटी नहीं है। झूटे वादे करके लोगों को बरगलाया जा रहा है। वह कहते हैं कि नेपाली गोरखाओं की तो जबरदस्त पूछ है। सिंगापुर पुलिस, ब्रिटिश आर्मी, दुबई पुलिस, फ्रांस आर्मी, जर्मनी सेना और यहां तक कि ब्रुनेई पुलिस में भी नेपाली गोरखाओं खूब मांग है। वह कहते हैं कि पहले गोरखा केवल भर्ती के लिए भारतीय सेना या ब्रिटिश आर्मी ही जाते थे, लेकिन भारत की अग्निपथ योजना की वजह से उन्हें अन्य रोजगार विकल्पों खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा है। भर्ती शर्तों को लेकर नेपाल और भारत के बीच बातचीत में गतिरोध बना हुआ है। जिसके चलते रूसी सेना में भर्ती होना कई निराश गोरखाओं के लिए एक आकर्षक विकल्प के तौर पर सामने आया है।

अग्निपथ स्कीम अपनाएं नेपाली गोरखा

प्रदेश राय टूटी-फूटी हिंदी में बताते हैं कि नेपाल सरकार को चाहिए कि वह अग्निपथ को लेकर भारत सरकार के साथ बातचीत करे। कुछ सौदेबाजी करे तो शायद बात बन जाए। वह कहते हैं कि नेपाल में रोजगार नहीं है। नेपाली सेना में गोरखाओं की भर्ती की इतनी गुंजाइश नहीं है। ऐसे में नेपाल सरकार को भी अपना रुख लचीला रखना चाहिए। अग्निपथ स्कीम तो भारत के बच्चों के लिए भी है, केवल नेपाल सरकार को क्यों परेशानी हो रही है। वह सुझाते हैं कि यहां गोरखे बहुत ज्यादा हैं। चीनी सेना में वे जाएंगे नहीं। नेपाली गोरखाओं को अग्निपथ स्कीम अपनानी चाहिए, भले ही चार साल के लिए ही सही। अग्निपथ स्कीम में सिक्योरिटी है और आगे के लिए अच्छे चांस हैं।

वह आगे कहते हैं कि एक तो चार साल बाद 25-30 लाख रुपये लेकर नेपाली गोरखा घर लौटेगा, यहां कोई धंधा भी शुरू कर सकता है और यहां के लोगों को रोजगार भी देगा। नहीं तो सिंगापुर पुलिस, ब्रिटिश आर्मी, दुबई पुलिस, फ्रांस आर्मी, जर्मनी सेना और ब्रुनेई पुलिस तो हैं ही नौकरी के लिए। उन्हें भी भारतीय सेना के ट्रेंड किए हुए गोरखा मिलेंगे। चार साल में कोई गोरखा बूढ़ा नहीं होने जा रहा, वह मार्शल कौम है, उनके पास नौकरियों के बहुत मौके हैं। वह बताते हैं कि यूके की आर्मी गोरखाओं को चार लाख नेपाली रुपये तनख्वाह देती है, जबकि सिंगापुर आर्मी डेढ़ लाख रुपये के अलावा बाकी कई सुविधाएं भी देती है। वह बताते हैं कि ब्रुनेई पुलिस और सिंगापुर पुलिस में तकरीबन 5000 गोरखे हैं और हर साल भर्तियां निकलती हैं।

गोरखा सोल्जर पैक्ट 1947

साल 1947 में आजादी के दौरान भारत में 10 गोरखा रेजीमेंट हुआ करती थीं। लेकिन गोरखा सोल्जर पैक्ट 1947 के तहत इनमें से छह भारतीय सेना का हिस्सा बनी रहीं, जबकि बाकी चार रेजिमेंट ब्रिटिश सेना का हिस्सा बन गईं। मौजूदा वक्त में भारतीय सेना में सात गोरखा रेजिमेंट हैं और उनकी 39 बटालियन हैं, जिनमें लगभग 32,000 गोरखा सैनिक हैं। इनमें लगभग 60 फीसदी सैनिक नेपाल से हैं और 40 फीसदी भारत के गोरखाली समुदाय से हैं। वहीं अग्निपथ स्कीम आने के बाद नेपाल और भारत सरकार के बीच मतभेद शुरू हो गए। नेपाल सरकार ने कह दिया कि वह गोरखा रेजीमेंट के लिए अग्निपथ योजना के तहत गोरखाओं को भर्ती के लिए नहीं भेजेगी, क्योंकि यह गोरखा सोल्जर पैक्ट 1947 का उल्लंघन है।

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