भाजपा आंध्र प्रदेश में टीडीपी और जनसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। पार्टी को लोकसभा में छह सीटें और विधानसभा में 10 सीटें मिली हैं। इसमें तीन लोकसभा सीटों पर उसकी दावेदारी मजबूत बताई जा रही है। तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में भाजपा इस बार अपने लिए ज्यादा संभावनाएं देख रही है।
काली रंग की त्वचा पर दिए गए सैम पित्रोदा के एक बयान ने नया सियासी तूफान पैदा कर दिया है। कांग्रेस नेता के इस बयान को भाजपा दक्षिण भारत में बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वारंगल की जनसभा में इस मुद्दे को उठाकर इसका संकेत भी दे दिया है। यदि भाजपा इसे मुद्दा बनाने में सफल रही, तो अगले चरण में आंध्र प्रदेश (25 लोकसभा सीटें) और तेलंगाना (17 लोकसभा सीटें) में उसे इसका लाभ मिल सकता है। कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने कहा है कि 'दक्षिण भारत के लोग काले रंग के होते हैं और दक्षिण अफ्रीका के लोगों के जैसे' दिखते हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वारंगल की रैली में कहा कि जब भाजपा ने आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनाने का निर्णय लिया था, कांग्रेस ने उनकी उम्मीदवारी का विरोध किया था। उन्होंने कहा कि अब समझ आता है कि कांग्रेस के लोगों ने काली रंग की त्वचा को देखकर उनका विरोध किया था। उन्होंने कहा कि संभवतया कांग्रेस के लोगों ने उन्हें (द्रौपदी मुर्मू) को भी अफ्रीका का मान लिया था। यह विवाद आदिवासी समुदाय की बहुलता वाले आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में संवेदनशील हो सकता है। काली रंग की त्वचा पर टिप्पणी इस इलाके में नया विवाद पैदा कर सकती है।
किसकी दावेदारी मजबूत
भाजपा आंध्र प्रदेश में टीडीपी और जनसेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। पार्टी को लोकसभा में छह सीटें और विधानसभा में 10 सीटें मिली हैं। इसमें तीन लोकसभा सीटों पर उसकी दावेदारी मजबूत बताई जा रही है। तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में भाजपा इस बार अपने लिए ज्यादा संभावनाएं देख रही है। शुरुआती दौर में वह तेलंगाना में आठ से दस लोकसभा सीटों पर अपनी जीत तय मानकर चल रही थी।
हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की मजबूत जीत से राज्य के राजनीतिक समीकरणों में बड़ा फेरबदल हुआ है और अब राज्य में भाजपा-कांग्रेस के बीच कांटे की लड़ाई मानी जा रही है। जबकि बीआरएस भी अपनी वापसी के लिए खूब हाथ-पांव मार रही है। मुस्लिम और आदिवासी समुदाय की बहुलता वाली आबादी के बीच मुस्लिम आरक्षण के मुद्दे उठाने से भाजपा को लाभ मिल सकता है। जबकि आंध्र प्रदेश में ही टीडीपी ने मुसलमानों के लिए चार फीसदी आरक्षण का वादा कर अपने ही गठबंधन के सहयोगी भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एक ही गठबंधन के बीच परस्पर विरोधी मुद्दों पर चुनाव लड़ने से भ्रम पैदा हो सकता है जिसका गठबंधन के दोनों ही दलों को नुकसान हो सकता है।
त्वचा के रंग पर अलग दिखाने की कोशिश खतरनाक
आंध्र प्रदेश भाजपा नेता एसके अहमद ने अज़रा न्यूज़ से कहा कि दक्षिण भारत के लोगों के बीच नस्लीय विवाद कभी नहीं रहा है। लेकिन द्रविड़ियन राजनीति के प्रभाव के कारण दक्षिण भारत के लोगों के बीच हिंदी भाषा और काली रंग के त्वचा पर आम जनता की भावनाएं संवेदनशील हो गई हैं। उन्होंने कहा कि सैम पित्रोदा का बयान दक्षिण भारतीय लोगों को त्वचा के रंग के आधार पर देश के दूसरे लोगों से अलग करके दिखाने की कोशिश है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत के लोग इसे कतई स्वीकार नहीं करेंगे।
भाजपा नेता ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने आजादी के काल में ही धर्म के आधार पर देश को बांट दिया। आज जातिगत आधार पर आरक्षण की बात करके राहुल गांधी हिंदू समुदाय को बांटने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरह से सैम पित्रोदा ने बयान दिया है, उससे यह साफ हो जाता है कि अब वह लोगों को त्वचा के रंग के आधार पर भी अलग-अलग पहचान देने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि यह देश की एकता के लिए खतरनाक हो सकता है।
सकारात्मक अर्थों में था पित्रोदा का बयान
राजनीतिक वाद-विवाद के बीच असलियत यह है कि सैम पित्रोदा का बयान सकारात्मक नजरिए से दिया गया है। उन्होंने अपने एक बयान में कहा है कि भारत बहुत बड़ा और विविधता भरा देश है। यहां पूर्वोत्तर के लोग चीन के लोगों के जैसे दिखते हैं, पश्चिमी सीमा पर रह रहे लोग अफगानी मूल के लोगों के जैसे और दक्षिण भारत के लोग काले रंग की त्वचा के कारण दक्षिण अफ्रीकी लोगों के जैसे दिखते हैं। इस विविधता के बाद भी पूरा भारतीय समाज एकजुट होकर एक साथ रहता है और यही भारत की असली ताकत है।
पित्रोदा का बयान सकारात्मक अर्थों में दिया गया है, लेकिन चुनावी समय में इसकी व्याख्या अलग तरह से की जा रही है। मामले की नजाकत को भांपते हुए कांग्रेस ने इस बयान से दूरी बरतने में ही अपनी भलाई समझी। कांग्रेस के मीडिया इंचार्ज जयराम रमेश ने इस विवाद के सामने आते ही तुरंत एक बयान जारी करते हुए इसे पित्रोदा की व्यक्तिगत राय बताते हुए इससे दूरी बरती। लेकिन भाजपा इसे मुद्दा बनाने की पुरजोर कोशिश कर रही है।