डेढ़ अरब के क़रीब बकायेदारी की वसूली के प्रति गंभीर नहीं सहकारिता विभाग
-भूमि विकास बैंक का 15.5 करोड़, ज़िला सहकारी बैंक का 1.25 अरब, बी. पैक्स का 7.16 करोड़ है बकाया
– शा सन के 60 फ़ीसदी वसूली लक्ष्य से कोसों दूर है अनुभाग, डीएम-सीडीओ को दी जाती है भ्रामक रिपोर्ट
– पूर्व मंत्री अयोध्या पाल के विशेष प्रयासों से हुआ था घोटाला उजागर, अब दबी पड़ी है पत्रावली
मो ज़र्रेयाब खान अजरा न्यूज़ फतेहपुर। जनपद में सहकारिता विभाग लम्बे समय से भारी-भरकम बकायेदारी वसूल नहीं कर पा रहा है या यूं कहें कि विभाग का सिस्टम इतना जर्जर है कि इस सन्दर्भ में जिम्मेदार गंभीर ही नहीं हैं। वैसे शासन ने इस बड़ी रकम की वसूली के लिए सूबे के प्रत्येक जिले में अलग से संग्रह अनुभाग बना रखा है, जो एक गैर सरकारी इकाई है जिसका काम तीनों सेक्टर में काम करके बकाए की वसूली करना है किन्तु यह इकाई अपनी स्थापना के उद्देश्य से पूरी तरह भटक चुकी है और इसके कर्मचारियों से संग्रह अनुभाग के अतिरिक्त और भी पटलों का काम लिए जाने से बकाया वसूली बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं और बकायेदारी बढ़ती जा रही हैं। ख़बर है कि शासन ने ज़िले में ष्डेढ़ अरबष् से अधिक की सहकारी बकायेदारी के प्रति गंभीरता दिखाते हुए इस सीजन हर हाल में 60 फ़ीसदी वसूली कराने के निर्देश सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक सहकारिता के साथ-साथ, डीएम और सीडीओ को दिए थे जिसके विपरीत अब तक कुछ लाख की ही वसूली हो पाई है, जबकि वसूली सत्र अगले माह समाप्त होने वाला है।
गौरतलब है कि सूबे में 80 के दशक में सहकारिता के उरुच के वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्रा ने प्रदेश में सहकारिता विभाग से संबंधित भूमि विकास बैंक (एलडीबी), ज़िला सहकारी बैंक और कृषि ऋण समितियों (बी.पैक्स) की निरंतर बढ़ती बकायेदारी पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए उद्देश्यपूर्ण संग्रह अनुभाग की स्थापना की थी, जिसे सभी जनपद मुख्यालयों में सहकारिता विभाग (एआरसीएस कार्यालय) में एक अतिरिक्त कक्ष देकर समूचे संसाधनों और अधिकार के साथ स्थापित किया गया था। शासन ने ज़िला स्तर पर संग्रह अनुभाग का नियंत्रण ज़िला सहायक निबंधक को सौंपा किन्तु अब इस परिवर्तित पद नाम सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक सहकारिता के पद पर तैनात मोहसिन जमील इस मद में कतई गंभीर नहीं दिखते हैं। बताते चलें कि मौजूदा समय में उपरोक्त संग्रह अनुभाग पर डेढ़ अरब से अधिक की वसूली का काफ़ी दबाव है, जिसमें भूमि विकास बैंक (एल.डी.बी.) का लगभग 15.5 करोड़, ज़िला सहकारी बैंक का लगभग 1.25 अरब और कृषि ऋण समितियों (बी. पैक्स) का लगभग 7.16 करोड़ लम्बे समय से बकाया है, जिसकी वसूली के प्रति संग्रह अनुभाग कतई गंभीर नहीं दिखता हैं। ख़बर है कि लगभग दो वर्ष के अपने कार्यकाल में मौजूदा एआरसीएस ने संग्रह अनुभाग से संबंधित कर्मचारियों की एक बार भी न तो बैठक बुलाई और न ही अधीनस्थ कर्मचारियों को सलीके से कोई दिशा-निर्देश ही जारी किए। इतना ही न ही डीएम और सीडीओ को भी इस बाबत कोई रिपोर्ट दी गई। कहा जा सकता है कि जिला प्रशासन भी उपरोक्त के सन्दर्भ में गंभीर नहीं लगता। विभिन्न मदो के देयों की वसूली की समीक्षा में कभी भी भारी भरकम सहकारी देयों की वसूली को शामिल करके समीक्षा क्यों नहीं की जाती, यह अपने आप में यक्ष प्रश्न बना हुआ हैं। सूत्रों की मानें तो शासन ने पिछले वित्तीय वर्ष में इस वसूली पर ख़ास गौर करने और इस ज़िले में कम से कम 60 फ़ीसदी बकाया हर हाल में वसूले जाने के सख्त निर्देश दिए थे। साथ ही यह भी निर्देश थे कि संग्रह सहायक से किसी भी हाल में दूसरे पटल का काम न लिया जाए किन्तु मौजूदा समय में एआरसीएस मोहसिन जमील द्वारा स्थानीय एक मात्र संग्रह सहायक अनिल वर्मा को संग्रह पटल के साथ-साथ अत्यंत महत्वपूर्ण मूल्य समर्थन पटल एवं ग्रामीण गोदाम पटल समेत चार अन्य अतिरिक्त पटलों का कार्यभार सौंपा गया है। नतीजतन संग्रह सहायक श्री वर्मा के पास अपने मूल काम बकाया वसूली पर ध्यान केंद्रित करने का समय ही नहीं बचता। सूत्र बताते हैं कि अनिल वर्मा जो कि विशुद्ध सरकारी कर्मचारी भी नहीं हैं, बावजूद इसके उनको मूल्य समर्थन और ग्रामीण गोदाम पटल का प्रभार सौंपा जाना शासन की व्यवस्था के सर्वथा विपरीत है, फ़िर भी एआरसीएस मोहसिन जमील शासन की मंशा के विपरीत क्यों कार्य कर रहे हैं, यह समझ से परे है। ग़ौरतलब है कि एआरसीएस मोहसिन जमील के पास स्टाफ की कतई कमी भी नहीं है, जिनमें वरिष्ठ लिपिक हरेहा अज़ीज़, सहायक लेखाकार सुमित श्रीवास्तव, कनिष्ठ सहायक अर्पित केसरवानी, सहकारी कृषि पर्यवेक्षक बृजेश सिंह, सहायक सांख्यिकी अधिकारी (लिपिक संवर्ग) अन्नपूर्णा पाण्डेय समेत अपर जिला सहकारी अधिकारी मुख्यालय के अतिरिक्त चारष् अन्य शामिल हैं, जो कि सभी विशुद्ध सरकारी कर्मचारी हैं, बावजूद इसके ए.आर.सी.एस. श्री जमील ने उपरोक्त के अतिरिक्त एक विशुद्ध सरकारी कर्मचारी न होने के बावजूद और सेवानिवृत्ति की चैखट पर दस्तक दे रहे अनिल वर्मा पर चार-पांच महत्वपूर्ण पटलों का अतिरिक्त प्रभार किन परिस्थितियों में सौंपा गया है, वह अपने आप में पुरानी शिकायतों को संबल प्रदान करता है, जिसमें उन पर कई प्रकार के गंभीर आरोप लगाए गए थे। वहीं पिछले लगभग 30 वर्षों से स्थानीय संग्रह अनुभाग में संग्रह सहायक के पद पर अनिल वर्मा सेवारत हैं, जिनको कुछ वर्ष पूर्व गंभीर शिकायतों ख़ासकर तत्कालीन ज़िला सहकारी बैंक के चेयरमैन उदय प्रताप उर्फ मुन्ना सिंह की ख़ास कथित पैरवी पर यहां से हटाया गया था, किन्तु कुछ महीने बाद ही विभाग की लचर पैरवी के चलते उसकी वापसी हो गई। अनिल वर्मा को सहकारिता विभाग में व्यापक वित्तीय गड़बड़ियों का सूत्रधार भी माना जाता हैं। कहते हैं कि विभाग की तमाम महत्वपूर्ण पत्रावलियां जिनमें कई बी-पैक्स के प्रभारी सचिवों की वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित भी हैं, वे ज़्यादातर अनिल के घर में होती हैं या यूं कहें कि एक गैर सरकारी कर्मचारी अपने घर से पैरलर सहकारिता विभाग का दशकों से संचालन कर रहा है और एआरसीएस उसके हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। इस सन्दर्भ में शासन को अलग-अलग भेजी गई शिकायतों में उपरोक्त प्रकरण को गंभीरता से लेने और त्वरित कार्यवाही करने की मांग की गई हैं। भाजपा के एक वरिष्ठ नेता द्वारा मुख्यमंत्री को भेजे गए एक शिकायतीपत्र में लगभग डेढ़ दशक पूर्व प्रदेश सरकार के तत्कालीन नागरिक सुरक्षा राज्य मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल के विशेष प्रयासों से ज़िला सहकारी बैंक (फतेहपुर) की उजागर हुईं सौ करोड़ से अधिक की वित्तीय अनियमितताओं के प्रकरण की पुनः गंभीरता से जांच कराने और इस गड़बड़ी के साथ-साथ एलडीबी और कृषि ऋण समितियों में हुईं व्यापक गड़बड़ियों की भी जांच कराने की मांग की है। शिकायतीपत्र में सहकारिता के संग्रह अनुभाग की भूमिका और सहकारिता विभाग द्वारा पोषित कुछ चर्चित प्रकरणों के प्रति शासन का ध्यान आकृष्ट कराया गया है। ज्ञातव्य रहे कि पूर्व मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल की शिकायत पर ही डीसीबी (फतेहपुर) के तत्कालीन चेयरमैन उदय प्रताप उर्फ मुन्ना सिंह समेत कई नेताओं प्रबंधकों के खिलाफ भी एफ.आई.आर. दर्ज़ कराई गई थी, जिसकी पत्रावली अब कोआपरेटिव सेल की कानपुर में दबी पड़ी है, जिसपर भी दिशा निर्देश जारी करने की मांग की गई हैं।