एनपीके व एसएसपी उर्वरक डीएपी की तुलना में प्रभावी व संतुलित
– मृदा परीक्षण करवाकर आवश्यकता के अनुरूप संतुलित उर्वरक का प्रयोग करें किसान
मो. ज़र्रेयाब खान अजरा न्यूज़ फतेहपुर। जिला कृषि अधिकारी ने बताया कि रबी मौसम की विभिन्न फसलों की बुवाई हेतु संतुलित उर्वरकों के प्रयोग के संबंध में शासन के वरिष्ठतम अधिकारियों के द्वारा क्षेत्र भ्रमण और विभागीय परिचर्चाओं के दौरान कुछ तथ्य प्रकाश में लाये गये हैं जिन्हें जनपद के किसानों के संज्ञान में लाना है। उन्होने बताया कि वैज्ञानिक संस्तुति के अनुसार किसी भी फसल के अच्छे उत्पादन हेतु नाइट्रोजन फास्फोरस एवं पोटाश का अनुपात 4ः2ः1 होना चाहिए। वर्तमान में अनुपात 28ः9ः1 है। यह अनुपात प्रदर्शित करता है कि जनपद के किसान खेती के लिये बुवाई के समय अधिकाशतः डीएपी का ही प्रयोग कर रहे है। इससे उनकी फसलों को पोटाश की मात्रा नहीं मिल पा रही है। जबकि एनपीके का प्रयोग करने पर सन्तुलित रूप से तीनो महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की उपलब्धता हो जाती है।
कृषकों को अवगत कराना है कि मुख्य पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु एपीके (12ः32ः16, 10ः26ः26) जैसे मिश्रित उर्वरकों के प्रयोग से फसलों में संतुलित मात्रा में पोषक तत्वों की पूर्ति हो जाती है, जिसका सकारात्मक प्रभाव फसल उत्पादन व उपज की गुणवत्ता वृद्धि पर पड़ेगा। रबी सीजन की विभिन्न फसलों जैसे चना, मटर, मसूर, गेहूँ, सरसों तथा आलू की बुवाई के समय फास्फेटिक उर्वरकों की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान में फास्फेटिक उर्वरकों के कई विकल्प किसानों के लिये उपलब्ध है, जैसे डीएपी, एनपीके, एसएसपी एवं टीएसपी है। डीएपी में दो पोषक तत्व नाइट्रोजन एवं फास्फोरस उपलब्ध होते है। एनपीके के विभिन्न ग्रेड के कामप्लेक्स फर्टिलाईजस में सन्तुलित रूप से नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटेशियम तीनो अत्यन्त महत्वपूर्ण प्राथमिक पोषक तत्वों की उपलब्धता हो जाती है। आलू जैसे महत्पवूर्ण कामर्शियल फसल के लिये सन्तुलित उर्वरक, विशेष रूप से पोटाश का उत्पादन एवं गुणवत्ता हेतु महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस प्रकार फास्फोरस के दूसरे महत्वपूर्ण उर्वरक एसएसपी जिसमें 16 प्रतिशत फास्फोरस एवं 11 प्रतिशत सल्फर के साथ कैल्शियम की प्रचुर मात्रा पायी जाती है। यह उर्वरक सरसों जैसे तिलहनी फसलों के उत्पादन हेतु अत्यन्त महत्वपूर्व है। सरसों के तेल के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हेतु सल्फर की आवश्कता होती है। दलहनी फसलों के लिये भी एनपीके एवं एसएसपी जैसे उर्वरक डीएपी की तुलना में प्रभावी व सन्तुलित है। जानकारी के अभाव में प्रायः किसान डीएपी के प्रयोग के लिये आतुर होते है। असन्तुलित मात्रा में उर्वरकों के प्रयोग से लागत में वृद्धि होती है। उर्वरक क्षमता में कमी के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या में वृद्धि होती है। रबी फसलों में सन्तुलित उर्वरक उपयोग करने से फसल उत्पादकता व गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ अनेक फायदे जैसे-गेहूँ के दाने मोटे एवं चमकदार, सरसों में तेल की मात्रा में वृद्धि लहसुन में गन्ध व गुणवत्ता में वृद्धि के साथ ही फसलों में कीट व रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसलिए जनपद के किसान मृदा परीक्षण करवाते हुये फसलों की आवश्यकता के अनुरूप सन्तुलित उर्वरकों का ही प्रयोग करें।