सहकारी देयों का डेढ़ अरब फंसा, वसूली के प्रति सहकारिता विभाग गंभीर नहीं
👉 संग्रह अनुभाग के स्टाफ से दूसरे पटलों का काम ले रहे एआरसीएस
👉 पूर्व मंत्री अयोध्या पाल ने जताई चिंता, शासन-प्रशासन से गंभीरता दिखाने और कार्यवाही की मांग
👉 वसूली लक्ष्य 60 फ़ीसदी, अब तक हुईं सिर्फ़ 00.67 फ़ीसदी
👉 संग्रह सहायक पर दूसरे पटलों का अतिरिक्त बोझ, प्रभावित हो रहा सहकारिता आंदोलन
👉 किसान दिवस आज, उठ सकता है नवगठित बी.- पैक्स गठन में गड़बड़ी का मामला
👉 एआरसीएस एवं संग्रह स्टाफ की तय हो जवाबदेही: पूर्व मंत्री
👉 मो ज़र्रेयाब खान अजरा न्यूज़ फतेहपुर। सहकारिता विभाग लगभग डेढ़ अरब रुपए की भारी-भरकम बकायेदारी को लेकर अभी भी गंभीर नहीं हुआ है, जबकि वसूली सत्र के समाप्त होने में थोड़ा समय बचा है। सहकारी देयों की वसूली का जिम्मा संभालने वाले संग्रह अनुभाग के स्टाफ से दूसरे अनुभाग का बेतहाशा काम लिए जाने से साठ फ़ीसदी वसूली लक्ष्य का सौवें हिस्से का आंकड़ा भी छू पाना संभव नहीं लगता हैं! वहीं प्रदेश के पूर्व नागरिक सुरक्षा राज्य मंत्री अयोध्या प्रसाद पाल ने इस पर खासी चिंता जताई है, और शासन-प्रशासन से तुरन्त संग्रह अनुभाग में स्टाफ बढ़ाने और पुराने स्टाफ की जवाबदेही तय करने की मांग की है।
बताते चलें कि लगभग डेढ़ दशक पूर्व जनपद में ज़िला सहकारी बैंक में लगभग पचासी करोड़ के क़रीब घोटाला पकड़ा गया था, उस समय इस पर कड़ी कार्यवाही भी हुई थी और तत्कालीन बैंक चेयरमैन उदय प्रताप उर्फ मुन्ना सिंह की खासी मुश्किलें बढ़ गई थीं और दर्जन भर के क़रीब बैंक के विभिन्न शाखा प्रबंधकों और अन्य सहकारी कर्मियों के खिलाफ क़ानूनी कार्रवाई भी हुईं थीं, जिसके सूत्रधार बने थे प्रदेश की मायावती सरकार के तत्कालीन राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार अयोध्या प्रसाद पाल, जिन्होंने शासन स्तर पर तगड़ी लिखा-पढ़ी करके बड़ी कार्यवाही अमल में लाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। अयोध्या पाल अब भाजपा में हैं और सहकारिता के पुराने मामलों पर विभाग की भूमिका को लेकर फ़िर एक बार शासन स्तर पर लिखापढ़ी करने का मन बना रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार पूर्व मंत्री सहकारिता के गड़बड़ झाले में मौजूदा सहायक आयुक्त एवं सहायक निबंधक (ए.आर.सी.एस.) मोहसिन जमील की भूमिका पर सवाल उठा चुके हैं। उनका तर्क है कि डेढ़ अरब का आंकड़ा पार कर चुकी सहकारी देयों की वसूली के प्रति विभाग और बैंक गंभीर क्यों नहीं है। उन्होंने शासन और प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों से सवाल किया है कि सहकारिता के संग्रह अनुभाग के स्टाफ से दूसरे अनुभाग का काम क्यों लिया जा रहा है, जबकि इस अनुभाग का काम सिर्फ़ वसूली करना है, बावजूद इसके ए.आर.सी.एस. संग्रह अनुभाग के अनिल वर्मा पर दूसरे अनुभाग के कई-कई पटलों का ग़लत ढंग से अतिरिक्त प्रभार सौंपकर वसूली अभियान को सीधे तौर पर प्रभावित कर रहे हैं।
बताते हैं कि अनिल वर्मा (कनिष्ठ लिपिक संग्रह) जो कि गैर सरकारी कर्मचारी हैं, उन्हें ए.आर.सी.एस. कार्यालय के “मूल्य समर्थन, ग्रामीण गोदाम आदि कई महत्वपूर्ण पटलों का अतिरिक्त प्रभार” सौंपे जाने से सहकारी देयों की वसूली के मूल पटल संग्रह की ओर से श्री वर्मा का ध्यान पूरी तरह भटका दिया गया है। नतीजतन वसूली सत्र समाप्त होने में कुछ ही सप्ताह शेष बचे हैं और डेढ़ अरब का साठ फ़ीसदी शासकीय वसूली लक्ष्य के विपरीत सिर्फ़ 00.67 फ़ीसदी ही अब तक वसूली हो पाई हैं, जो ए.आर.सी.एस. मोहसिन जमील के गैर जिम्मेदाराना रवैये का जीता जागता उदाहरण है।
ख़बर है कि पूर्व मंत्री ने शासन स्तर पर सवाल किया है कि एआरसीएस ने सहकारिता विभाग के कर्मचारी वरिष्ठ लिपिक हरेहा अज़ीज़, सहायक लेखाकार सुमित श्रीवास्तव, कनिष्ठ सहायक अर्पित केसरवानी, सहकारी कृषि पर्यवेक्षक बृजेश सिंह, सहायक सांख्यिकी अधिकारी अन्नपूर्णा पाण्डेय समेत कई अपर ज़िला सहकारी अधिकारियों आदि की उपेक्षा करके गैर सरकारी कर्मचारी अनिल वर्मा को मूल्य समर्थन (गेहूं – धान खरीद) एवं ग्रामीण गोदाम आदि महत्वपूर्ण पटल की ज़िम्मेदारी सौंप रखी है, गैर सरकारी कर्मचारी से सरकारी कर्मचारियों के रहते हुए महत्वपूर्ण पटलों का काम लेना अपने आप में एआरसीएस की क्रिया-शीलता पर शक उत्पन्न करता है।
जनपद में सहकारी देयों की वसूली के प्रति सहकारिता विभाग के मुखिया एआरसीएस श्री जमील कितना गंभीर है, उसका आंकलन इसी से लगाया जा सकता है कि वसूली सत्र की गंभीरता को नजरंदाज करते हुए प्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी “सहकार से समृद्धि योजना” के तहत न्याय पंचायत स्तर तक व्यवसाय करने के अधिकार के साथ गठित होने वाली बहुउद्देशीय प्राथमिक ग्रामीण सहकारी समितियों (बी.-पैक्स) के गठन की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी भी गैर सरकारी कनिष्ठ लिपिक (संग्रह) अनिल वर्मा को सौंप दिया है, जिससे सहकारी देयों की वसूली अभियान की न सिर्फ़ हवा निकल रही है बल्कि शासन द्वारा तय लक्ष्य की प्राप्ति के बाबत गंभीरता ही नहीं दिखाई जा सकी।
एक अन्य जानकारी के अनुसार संग्रह लिपिक अनिल वर्मा द्वारा अभी तक बकाएदारों से वसूली बाबत किसी भी प्रकार की कार्ययोजना न तो तैयार की गई और न ही ए.आर.सी.एस. स्तर से वसूली का कोई अभियान ही शुरू किया गया है, जिससे लक्ष्य प्राप्ति तो दूर कुल बकाए का “एक फ़ीसदी” भी वसूल हो पाना संभव नहीं लगता है।
खबर है कि कल विकास भवन सभागार में प्रस्तावित किसान दिवस में उपरोक्त बिन्दुओं पर भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) द्वारा ए.आर.सी.एस. को जमकर घेरा जा सकता है और इसका जवाब मुख्य विकास अधिकारी और जिला विकास अधिकारी को देना पड़ सकता है।
कुल मिलाकर आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे सहकारिता विभाग के क्रिया कलापों पर एक बार फिर पूर्व मंत्री ने चिन्ता जताई है। वहीं एक और सत्र में सहकारी देयों की भारी बकायेदारी बरकरार रहने की संभावनाओ से इंकार नहीं किया जा सकता है। साथ ही संग्रह सहायक से सिर्फ वसूली का ही काम लिए जाने की मांग तेज हो गई है। साथ ही नई समितियों के गठन प्रक्रिया की जांच करवाने की मांग की गई हैं।