तालाब पर कब्जे को लेकर उलझा मामला, दो लेखपालों की रिपोर्ट में फर्क
तालाब पर कब्जे को लेकर उलझा मामला, दो लेखपालों की रिपोर्ट में फर्क
तालाब पर कब्जे को लेकर उलझा मामला, दो लेखपालों की रिपोर्ट में फर्क
गूगल से लिया गया चित्र
– कागज़ों में तालाब कब्जा मुक्त, मौके पर हालात ज्यों के त्यों
– मुख्यमंत्री पोर्टल पर बार-बार शिकायत, फिर भी नहीं हुआ प्रभावी निस्तारण मो. ज़र्रेयाब खान अज़रा न्यूज़-फतेहपुर। जनपद की सदर तहसील क्षेत्र के एक गांव में हनुमान जी के मंदिर के पास स्थित तालाब की भूमि को लेकर विवाद ने प्रशासनिक कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राजस्व अभिलेखों में गाटा संख्या 219 ग (0.599 हेक्टेयर) एवं 219 ख (0.0445 हेक्टेयर) भूमि तालाब के रूप में दर्ज है। ग्रामीण अवनीश त्रिवेदी द्वारा मुख्यमंत्री जनसुनवाई पोर्टल पर दर्ज कराई गई शिकायत में आरोप लगाया गया कि इस सार्वजनिक तालाब पर बब्बू सिंह सहित कई लोगों ने कब्जा कर रखा है।
शिकायत के बाद सात जून 2025 को हल्का लेखपाल योगेन्द्र कुमार त्रिपाठी द्वारा की गई जांच में उक्त आरोपों की पुष्टि हुई। लेखपाल की रिपोर्ट के अनुसार तालाब की भूमि पर बब्बू सिंह पुत्र जसवंत सिंह, चंदू निषाद पुत्र जानकी निषाद, छोटू नई पुत्र राम बहादुर नई, रामेश्वर, राजा भैया मिश्रा, दुर्गा प्रसाद मिश्रा, अरविंद त्रिवेदी, दयाशंकर और रविशंकर आदि लोगों का स्थाई या अस्थाई कब्जा पाया गया। इस पर सभी को 15 दिन में स्वयं से कब्जा हटाने के नोटिस दिए गए, अन्यथा विधिक कार्रवाई की चेतावनी दी गई। जांच के दौरान ग्रामवासियों के बयान और फोटोग्राफ भी रिपोर्ट में संलग्न किए गए लेकिन इसी मामले में 20 दिन बाद 27 जून को एक अन्य लेखपाल निशांत गुप्ता द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट ने पूरे मामले को उलझा दिया। दूसरी रिपोर्ट में दावा किया गया कि तालाब की भूमि पर राजस्व टीम द्वारा दोबारा पैमाइश कर मजदूरों की सहायता से निशानदेही कराई गई और तालाब को ग्राम प्रधान को सुपुर्द कर दिया गया है। साथ ही यह भी कहा गया कि मौके पर कोई अवैध कब्जा नहीं पाया गया और शिकायत को सत्य एवं निराधार करार देकर प्रकरण को स्पेशल क्लोज करते हुए निस्तारित मान लिया गया। इन दो विरोधाभासी रिपोर्टों ने न केवल शिकायतकर्ता को भ्रमित किया, बल्कि प्रशासनिक निष्पक्षता और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े कर दिए। अवनीश त्रिवेदी ने इस विरोधाभास को लेकर पुनः मुख्यमंत्री हेल्पलाइन 1076 पर शिकायत करते हुए कहा कि कागजों में कब्जा हटाने की कार्रवाई दिखा दी गई है, जबकि जमीन पर अब भी वही लोग जमे हुए हैं। उन्होंने यह भी कहा कि यदि पहले रिपोर्ट में कब्जा था और नोटिस जारी किए गए थे, तो इतनी जल्दी दूसरे लेखपाल की रिपोर्ट में जमीन कैसे खाली हो गई? एक ही जमीन, एक ही विभाग और इतने कम अंतराल में दो अलग-अलग सत्य की प्रस्तुति इस ओर इशारा करती है कि जांच प्रक्रिया या तो गंभीर नहीं थी या फिर किसी दबाव के चलते सच्चाई को दबा दिया गया। प्रशासन द्वारा शिकायत को निस्तारित मान लेने के बावजूद शिकायतकर्ता लगातार असंतुष्ट फीडबैक देते हुए उच्च स्तरीय निष्पक्ष जांच की मांग कर रहे हैं। पूरे मामले में अब गांव के लोग भी सवाल उठाने लगे हैं कि क्या सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह जाएगी? अवनीश जैसे जागरूक नागरिकों की कोशिशें क्या अंततः सिर्फ खानापूरी में बदल जाएंगी? तालाब की भूमि को लेकर चले इस प्रकरण में दो लेखपालों की विपरीत रिपोर्टें अब केवल कब्जे या निस्तारण का मामला नहीं रही, यह प्रशासनिक जवाबदेही, ईमानदारी और पारदर्शिता का परीक्षण भी बन चुकी है।