ज़माना तो सुन रहा था बड़े शौक से,,,, तुम ही सो गए दास्तां कहते कहते
ज़माना तो सुन रहा था बड़े शौक से,,,, तुम ही सो गए दास्तां कहते कहते
ज़माना तो सुन रहा था बड़े शौक से,,,, तुम ही सो गए दास्तां कहते कहते 💐💐💐
एम ज़र्रेयाब खान अज़रा न्यूज
आज दीपावली का पर्व है दिल सहमा है आंख नम है। हमारी चर्चा में तुम्हारा नाम है ,,,,तुम्हारी याद है,,, जेहनों में तुम्हारी तस्वीर है और दिल में मोहब्बत है। आगे आने वाले वक्त को न भूल पाने वाला कालजई समय है। आज के दिन हमारे बीच से हमारा साथी हमे इस दुनिया से अपने सदैव होने का एहसास कराकर हमारा साथ छोड़ गया
कभी कभी जब हमारी अकेले में बात होती तो वो कहते,,,,
मैं इंसान हूं इंसान रहने की कसम खाई है,,, मुझको हिंदू या मुसलमान न समझा जाए,,,
दुश्मनों पर भी हो गर मुसीबत,, तो हर गलती को भूल जाता हूं।
नाम मेरा है “दिलीप सैनी” मैं कलम को लहू पिलाता हूं।
आज ही के दिन हमारा जाबाज़ पत्रकार साथी “दिलीप सैनी” हम सबको इस दुनिया से छोड़कर चले गए तुम्हारी दास्तान चंद शब्दों में नहीं पूरी की जा सकती लेकिन हृदय के एहसास में तुम हो।
मिसाल कहना अलग बात होती है,,, मिसाल बन जाना अलग बात,,, पत्रकार जगत की मिसाल बन जाने वाली शख्शियत “दिलीप सैनी” अपनी सूझ बूझ और सलाहियत के चलते पत्रकारिता जगत, सियासी व सामाजिक धुरंधरों के मंसूबे को तार तार कर देने वाले साथी “दिलीप सैनी” को क्या पता था कि उनके साथ दिन रात सहयोग और मदद मांगने वाले एक दिन उन्हें ऐसी भी दर्दनाक मौत देंगे।
कहते है कि सैकड़ों मील ऊंचाई से उड़ने वाला बाज़ जमीन में पड़े एक छोटे से दाने को देख लेता है। लेकिन पास में फैले उस जाल को नहीं देख पाता जिसमें उसे फसाया जाना होता है।
ख़ैर तुम्हे मिटाने वालों ने खुद अपने जीवन में अंधेरा कर लिया लेकिन तुम न रह कर भी पूरी दुनिया में प्रख्यात हो गए। आज के इस शिक्षा, आज़ादी और सम्मान फैलाने वाले प्रकाशमई महापर्व दीपावली के मौके पर देश के संविधान की सबसे मजबूत इकाई पत्रकारिता ने,,,, तुम्हारे पीछे छोड़े जाने वाली तुम्हारी अपनी परिवारिक दुनिया का अंधकार दूर नहीं कर सके,,, हम शर्मिंदा हैं मेरे दोस्त
क्योंकि प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार “गजेन्द्र माथुर” जी ने कहा था,,, “पत्रकारिता के लिए नियम और कानून किसी किताब में नहीं मिलेंगे उसे हमें खुद ही बनाने होंगे”
फिर क्या तुम्हारा ये कसूर था कि तुम पत्रकार थे जनतंत्र के लिए न्यायिक संघर्ष को अंतिम कड़ी तक ले जाना तुम्हारा कसूर था,,, शुरू में तो प्रशासन ने तुम्हें पत्रकार मानना तो दूर कहने को तैयार नहीं था। फिर पत्रकारों ने संगठित होकर जब आवाज उठाई तब जाकर प्रशासन ने कहना शुरू किया “पत्रकार दिलीप सैनी” बरहाल हालात जो भी रहे हो पत्रकारिता नुमा चेन की एक एक कड़ी के दिलो में सम्मान से तुम बसे हो हम सब पत्रकार आज भी तुम्हे हृदय मन से याद करते है,,,क्यूंकि इतिहास सदैव गवाह रहेगा ,,, जब जब अंधकार पर उजाले की जीत का पर्व दीपावाली मनाया जाएगा जगनायक भगवान “राम” याद आएंगे वैसे ही प्रकाशमई दीपावली पर्व पर तुम ज़रूर याद आओगे – मेरे दोस्त