नौकरशाही को भी सियासी चमक-दमक भाती है। इस बार लोकसभा चुनाव में भी कई पूर्व अफसर मैदान में है। नौकरशाही के सारे हुनर के माहिर अफसर राजनीति के दांव-पेच भी खूब जानते हैं।

केंद्र से लेकर उत्तर प्रदेश की सियासत में नौकरशाही का रुझान बढ़ता जा रहा है। बीते 24 वर्षों में राजनीति में आने वाले ब्यूरोक्रेट्स की संख्या लगातार बढ़ी है। सेना और इंजीनियरिंग संवर्ग के अधिकारी भी अपनी दूसरी पारी के लिए राजनीति को ही प्राथमिकता दे रहे हैं।

भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी नटवर सिंह, पूर्व सैन्य अधिकारी जसवंत सिंह जैसे कुछ चेहरे हैं जो राजनीति में बड़े ओहदों तक पहुंचे। यूपी की बात करें तो ओपी सागर, राय सिंह, चंद्र प्रकाश, देवी दयाल, ओपी राम, आरए प्रसाद समेत पूर्व नौकरशाहों की लंबी फेहरिस्त है, जो राजनीति में आए। इसके बाद नौकरशाही छोड़कर सियासत की दुनिया में आने का सिलसिला चल निकला। राजनीति में आने के लिए उन्हें वीआरएस लेने से भी कोई गुरेज नहीं है।

इस बार भी कई दावेदार

लोकसभा चुनाव की बात करें तो इस बार भी कई पूर्व ब्यूरोक्रेट़्स चुनाव लड़ने के लिए प्रयासरत दिख रहे हैं। पीएम मोदी के कैबिनेट सेक्रेटरी रहे नृपेंद्र मिश्रा के बेटे साकेत मिश्रा भाजपा के टिकट पर श्रावस्ती से चुनाव लड़ रहे हैं। पूर्व आईपीएस अरविंद सेन भाकपा से फैजाबाद से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। डिप्टी एसपी रहे शुभ नरायन गौतम को बसपा ने कौशांबी से प्रत्याशी बनाया है।

बसपा ने इस बार मथुरा से रिटायर्ड आईआरएस अधिकारी सुरेंद्र सिंह को प्रत्याशी घोषित किया है। इंजीनियरिंग संवर्ग के रिटायर्ड अफसर सुरेश गौतम को जालौन से टिकट दिया है। सपा ने रिटायर्ड एडीजे मनोज कुमार को नगीना से टिकट दिया है। नोएडा के पूर्व डीएम बीएन सिंह ने तो नौकरी में रहते राजनीति में पैठ जमानी शुरू कर दी थी। हालांकि उन्हें टिकट नहीं मिल सका।

दल बदलने में माहिर

नौकरशाही के सारे हुनर के माहिर अफसर राजनीति के दांव-पेच भी खूब जानते हैं। यही वजह है कि मौका पड़ने पर राजनेताओं की तरह वह पाला बदलने से नहीं चूकते। बसपा सरकार में सबसे कद्दावर अफसरों में शुमार किए जाने वाले आईएएस कुंवर फतेह बहादुर सिंह और रामबहादुर ने सेवानिवृत्ति के बाद बसपा का दामन थाम लिया था।

फतेह बहादुर बाद में सपा, तो रामबहादुर भाजपा में चले गए। इसी तरह बसपा सुप्रीमो मायावती के करीबी अफसरों में शुमार रहे पीएल पुनिया ने कांग्रेस की राजनीति करने का फैसला लिया। पूर्व आईएएस अफसर नीरा यादव के पति पूर्व आईपीएस महेंद्र सिंह यादव सपा सरकार में मंत्री बने, लेकिन बाद में उन्होंने भाजपा में जाने का फैसला कर लिया।

भाजपा अफसरों की पहली पसंद

भाजपा में सबसे ज्यादा रिटायर्ड अफसर हैं। जनरल वीके सिंह ने गाजियाबाद से चुनाव लड़ा और केंद्र सरकार में मंत्री बने। हालांकि इस बार उन्होंने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है। मुंबई के पुलिस कमिश्नर रहे सत्यपाल सिंह भी भाजपा के टिकट पर बागपत से सांसद बनने के बाद केंद्र सरकार में मंत्री बने।

गुजरात काडर के आईएएस अफसर रहे एके शर्मा को यूपी सरकार में मंत्री बनाया गया, तो कानपुर के पुलिस कमिश्नर रहे असीम अरुण ने वीआरएस लेकर राजनीति में किस्मत आजमाई और चुनाव जीतकर यूपी सरकार में मंत्री बने।

पूर्व डीजीपी बृजलाल ने चुनाव तो नहीं लड़ा, पर भाजपा ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया। आईएएस अफसर रहे हरदीप सिंह पुरी को भी यूपी से राज्यसभा भेजा गया। भारतीय रेल सेवा के अफसर रहे देवमणि दुबे भाजपा से सुल्तानपुर की लंभुआ सीट से विधायक रह चुके हैं। ईडी के ज्वाॅइंट डायरेक्टर रहे राजेश्वर सिंह ने वीआरएस लेकर भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और विधायक बनने में सफल रहे।

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